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आ वां॒ रथं॑ युव॒तिस्ति॑ष्ठ॒दत्र॑ जु॒ष्ट्वी न॑रा दुहि॒ता सूर्य॑स्य। परि॑ वा॒मश्वा॒ वपु॑षः पत॒ङ्गा वयो॑ वहन्त्वरु॒षा अ॒भीके॑ ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā vāṁ rathaṁ yuvatis tiṣṭhad atra juṣṭvī narā duhitā sūryasya | pari vām aśvā vapuṣaḥ pataṁgā vayo vahantv aruṣā abhīke ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आ। वा॒म्। रथ॑म्। यु॒व॒तिः। ति॒ष्ठ॒त्। अत्र॑। जु॒ष्ट्वी। न॒रा॒। दु॒हि॒ता। सूर्य॑स्य। परि॑। वा॒म्। अश्वाः॑। वपु॑षः। प॒त॒ङ्गाः। वयः॑। व॒ह॒न्तु॒। अ॒रु॒षाः। अ॒भीके॑ ॥ १.११८.५

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:118» मन्त्र:5 | अष्टक:1» अध्याय:8» वर्ग:18» मन्त्र:5 | मण्डल:1» अनुवाक:17» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरा) सबके नायक सभासेनाधीशो ! (वपुषः) सुन्दर रूप की (जुष्ट्वी) प्रीति को पाए हुए वा सुन्दर रूप की सेवा करती सुन्दरी (युवतिः) नवयौवना (दुहिता) कन्या (सूर्य्यस्य) सूर्य्य की किरण जो प्रातःसमय की वेला जैसे पृथिवी पर ठहरे वैसे (वाम्) तुम दोनों के (रथम्) रथ पर (आ, तिष्ठत्) आ बैठे (अत्र) इस (अभीके) संग्राम में (पतङ्गाः) गमन करते हुए (अरुषाः) लाल रङ्गवाले (वयः) पखेरूओं के समान (अश्वाः) शीघ्रगामी अग्नि आदि पदार्थ (वाम्) तुम दोनों को (परि, वहन्तु) सब ओर से पहुँचायें ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य की किरणें सब ओर से आती-जाती हैं वा जैसे पतिव्रता उत्तम स्त्री पति को सुख पहुँचाती है वा जैसे पखेरू ऊपर-नीचे जाते हैं, वैसे युद्ध में उत्तम यान और उत्तम वीर जन चाहे हुए सुख को सिद्ध करते हैं ॥ ५ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे नरा नेतारौ सभासेनाधीशौ वपुषो जुष्ट्वी युवतिर्दुहिता सूर्य्यस्योषाः पृथिवीमिव वां रथमातिष्ठत्। अत्राभीके पतङ्गा अरुषा वयोऽश्वा वां परिवहन्तु ॥ ५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) (वाम्) युवयोः (रथम्) (युवतिः) नवयौवना (तिष्ठत्) (अत्र) (जुष्ट्वी) प्रीता सेवमाना वा (नरा) (दुहिता) (सूर्यस्य) कान्तिः (परि) (वाम्) युवाम् (अश्वाः) (वपुषः) सुरूपस्य। वपुरिति रूपना०। निघं० ३। ७। (पतङ्गाः) (वयः) पक्षिण इव (वहन्तु) (अरुषाः) रक्तादिगुणविशिष्टा अग्न्यादयः (अभीके) संग्रामे। अभीक इति संग्रामना०। निघं० २। १७। ॥ ५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र लुप्तोपमालङ्कारौ। यथा सूर्य्यस्य किरणाः सर्वतो विहरन्ति यथा पतिव्रता साध्वी पतिं सुखं नयति यथा पक्षिण उपर्यधो गच्छन्ति तथा युद्धे श्रेष्ठानि यानान्युत्तमा वीराश्चाभीष्टं साध्नुवन्ति ॥ ५ ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. जशी सूर्याची किरणे चोहीकडून येतात- जातात व पतिव्रता उत्तम स्त्री पतीला सुख देते, जसे पक्षी खाली-वर उडतात तसे युद्धात उत्तम यान व उत्तम वीर अभीष्ट सुख देतात. ॥ ५ ॥